February 18, 2011

Is this Manmohan Singh's "Nixon" moment?

There is peculiar similarity between Prime Minister Manmohan Singh and late US President Richard Nixon. During his second term as President of United States, Richard Nixon tried every trick in the book to cover up his connection with the Watergate episode. This included major public relations exercise. Before he could make people believe in his no-connection-with- Watergate theory, he had a tough task of making republicans believe in it. At the end, neither Republicans were convinced of his theory nor the people of United States.  

Prime Minister Manmohan Singh, surrounded with number of scams, seems to be going in the same direction as Richard Nixon. The only difference, between these two leaders, is that the clean image tag on Manmohan Singh is still intact without challenge from any quarter. 


An effort of rebuilding his public relations, through an interaction with television editors, was seen recently. It was, indeed, a public relation exercise as no other reason can be given for a sudden willingness of an interaction with editors when files on his table are piling up. He had the same interaction with journalists in May 2010 which failed to yield any results. It may be well intended, but Press meet alone cannot rebuild the image.

Manmohan Singh managed to retain his position with an impressive electoral performance. No political editor or expert could gauge the wind in his governments favour. Richard Nixon retained his position with an impressive performance in United States’ electoral history. No political editor or expert could gauge that too.   


Manmohan Singh is the only one who can answer questions related to the corrupt individuals in his cabinet. No less than Prime Minister himself can convince people that all wrongdoing is limited to certain individuals. Not the entire cabinet can be blamed for it. Richard Nixon had people believe that he was not aware of the conduct of his associates. He had to tell people that Watergate was job of certain rogues in his cabinet and not the entire presidency can be blamed for it.  

Congress, the largest party in the government, has already distanced itself from government on number of issues such as price rise, 2G, CWG etc. We see Congress spokespersons unwilling to talk about anything which looks troublesome. That essentially leaves Prime Minister alone to answer opposition’s charges. Republican minority leader, after reading Watergate related transcripts, decided not to defend Nixon anymore. Republicans started avoiding commenting on everyday developments.  He was left on his own to talk on contentious issues.

Prime Minister wrote to A Raja asking him to follow auction process. Raja did not budge. Manmohan Singh could have asked A Raja to strictly follow his suggestion, but he only wrote one letter. That was the right time to act. Manmohan Singh chose not to. Richard Nixon was not involved in the entire gamut known as Watergate. He was not even aware of the purpose of Watergate burglary. He had those crucial moments when he could have asked his aides not to breach the boundary. Nixon chose not to.

Manmohan Singh, at the end of press meet, did say that he is not as guilty as made out to be. The message was clear to understand that there exists guilt. Richard Nixon addressed the nation three times after Watergate expose. His only argument was the same- I am not as guilty as made out be. The message was clear- there exists guilt.
    
Richard Nixon, while addressing questions from media on possible resignation, said several times that he has been given responsibility by people to govern.  Manmohan Singh said the same thing in as many words.
That leaves only one similarity, to be matched, between Richard Nixon and Manmohan Singh. Richard Nixon had to resign after an impressive tally in his last election. --------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------.

Time will fill that blank.    


  

February 13, 2011

फोन नही ब्लॅकबेरी

हमारे देश में मोबाइल क्रांति शुरू हो अब पुरानी भी लगने लगी है! अब एक नयी क्रांति का दौर है! हम इसे ब्लॅकबेरी क्रांति कह सकते हैं! अपने आसपास देख लीजिए, पता चल जाएगा की ब्लॅकबेरी की क्रांति के दिन चल रहे हैं! ज़्यादातर लोगों के हाथ में अब फोन नही ब्लॅकबेरी नज़र आता है! कभी सिर्फ़ बिज़्नेसमॅन इसे खरीद पाते थे! वो लोग जो एक जगह बैठ कर अपना काम नही कर सकते, ब्लॅकबेरी खरीद लेते थे! अब यह खिलोना हर किसी के पास है! अगर इसे खिलोना कहने की वजह से कोई मुझसे नाराज़ है तो में माफी माँगता हूँ! जैसे साउथ मुंबई की आंटी अपने कुत्ते को कुत्ता कहने से बुरा मान जाती हैं, वैसे ही आजकल ब्लॅकबेरी को फोन कह देने पर ब्लॅकबेरी धारक बुरा मान जाते हैं! जो इसका इस्तेमाल करते हैं वो एक अलग सी श्रेणी के लोग है! श्रेणी अलग हो ना हो, कम से कम बाकी लोगों से अलग हैं ये दिखाने का मौका ब्लॅकबेरी दे देता है! फोन फॉर बिज़्नेस पर्पस की तरह बाज़ार मे आया ब्लॅकबेरी अब आपके स्टेटस का बिज़्नेस संभाल सकता है! कुछ साल पहले तक फोन होना भी एक स्टेटस था! धीरे धीरे एक अच्छा फोन होना स्टेटस बना! अब ब्लॅकबेरी स्टेटस है! चाहे जीन्स पहनो या पॅंट, ब्लॅकबेरी तो बनता है! अब क्या बिज़्नेस और क्या नौकरी, ब्लॅकबेरी एक ज़रूरत है!


ब्लॅकबेरी नये ह्यूमन पॅटर्न्स को जन्म दे चुका है! कुछ लोगो का समय अपने आप को व्यस्त दिखाने में जाता है! ये उनकी व्यावसायिक ज़रूरत है की वो अपने आप को व्यस्त दिखाए! ऐसे में ब्लॅकबेरी साथ देता है! अगर आपके बॉस ने आपको आम फोन पे लगे देखा तो आप पर समय ज़ाया करने का आरोप लग सकता है! ब्लॅकबेरी ले लीजिए, बॉस कभी शक नही करेंगे! इस्तेमाल किसी भी वजह से हो, आपके पास ब्लॅकबेरी है तो आप दुनिया के उन चंद लोगो में से है जो अपने आप में किसी पब्लिक फिगर से कम नही हैं!

बाज़ार में आने के बाद के कुछ दीनो तक ब्लॅकबेरी सिर्फ़ अपने पैसे से खरीदा जाता था! अब अभिभावक खुद ही बच्चो को गिफ्ट देते हैं! ब्लॅकबेरी ने काफ़ी लोगो का अकेलापन भी दूर किया है! अपने दोस्त का इंतेज़ार करते हुए ब्लॅकबेरी से खेलने से लेकर घर अकेले बैठ के अमेरिका वाली चाची से फ्री मेसेज मेसेज खेलने तक, ब्लॅकबेरी ने सबका साथ दिया है!

ब्लॅकबेरी क्रांति के कुछ और पहलू भी नज़र आते हैं! वो लोग जो एक पल भी बिना कुछ किए गुज़ार नही सकते, ब्लॅकबेरी को अपना साथी बना लेते हैं! सिगरेट पीते हुए पिछले पचास मेसेजस पढ़ना! कई बार पढ़े ईमेल्स दौबारा पढ़ना! कुछ लोगों को देख तो अंदाज़ा लगाना मुश्किल होता है उन्हे आदत सिगरेट पीने की है या ब्लॅकबेरी की! अब ब्लॅकबेरी लिया है तो फिर आसपास वालो को भी दिखाया जाए! जो काम साधारण फोन से भी हो सकता है उसे ब्लॅकबेरी से कर देना भी समाधान देता हैं! अपने पास ब्लॅकबेरी है तो सामने वाले से बिंदास पूछ लो- भाई कों सा फोन इस्तेमाल करते हो? अगर ब्लॅकबेरी हो तो मॉडेलो में अंतर पर चर्चा कर लो! और अगर दूसरा फोन है तो ब्लॅकबेरी होने के फ़ायदे गिना दो! बस आख़िर ये बता दो की ब्लॅकबेरी नही तो कुछ नही!

एक ब्लॅकबेरी धारक ने ब्लॅकबेरी के होने का मतलब कुछ इस तरह समझाया- यार ब्लॅकबेरी में बात हैहाथ में पकड़ के चलो तो आसपास के लोग ज़रा चमक जाते हैंब्लॅकबेरी ने मोबाइल फोन की तरह कई लोगो की ज़िंदगी आसान की है! ब्लॅकबेरी के इस सामाजिक रूप को भी सराहा जाना चाहिए! ब्लॅकबेरी के बारे में दिए कई तर्क किसी आम फोन के लिए भी दिए जा सकते हैं! पर ऐसा किसी ब्लॅकबेरी वाले से मत कहिएगा, क्या पता आपको अपना लेटेस्ट ब्लॅकबेरी दिखा ये साबित कर दे की ब्लॅकबेरी नही तो कुछ नही!

February 11, 2011

मनमोहन सिंह निबंध का विषय नही हैं!

स्कूल की परीक्षा में निबंध लिखना दो अलग तरीक़ो से देखा जाता रहा है! एक सोच निबंध लिखने को स्कूली जीवन के मनोरंजन की तरह देखती रही है! यह वो लोग हैं जिन्हे निबंध लिखना एक आसान काम लगता हैं! ठीक ठाक लिखना आता हो तो निबंध अच्छे नंबर दिला सकता है! दूसरी सोच निबंध लिखने को बड़ा कठिन मानती रही है! इन लोगो के मुताबिक निबंध बच्चो के मन में डर भी भर देता है! ऐसे किस्से सुनने को मिला करते हैं!

स्कूली जीवन में ज़्यादातर लोगों ने निबंध लिखा होगा! सबसे प्रिय विषय 'हमारे प्रधानमंत्री श्री ज़वाहरलाल नेहरू' हुआ करता था! ऐसा इसलिए क्योंकि जवाहरलाल नेहरू के बारे में जानकारी का कोई अभाव नही था! जवाहरलाल नेहरू पहले प्रधानमंत्री थे इसलिए उनका अलग से परिचय करवाने की ज़रूरत नही होती थी! कम पढ़े लिखे परिजन भी अपने बच्चो को इस विषय पर आसानी से निबंध लिखवा दिया करते थे! देश के हर कोने में नेहरू के बारे में लोग काफ़ी कुछ जानते थे! आज़ादी के बाद से लगभग पचास सालों तक जवाहरलाल नेहरू पर निबंध लिखा जाता रहा है! आगे आने वाले पचास सालों तक लिखा जाता रहेगा!! बस बाल दिवस और लाल गुलाब के बारे में लिख दीजिए और पूरे नंबर मिल जाते थे! शायद इसलिए पंडितजी की तरह स्कूली बच्चो को भी पंडितजी से बड़ा प्यार था! पंडितजी वाज़ द फर्स्ट अंड मोस्ट पॉपुलर प्राइम मिनिस्टर ऑफ द कंट्री पहली लाइन होती थी! पंडितजी पर लिखे जाने वाले निबंधो में लिखने वालों के आदर भाव की भी थोड़ी बहुत झलक हुआ करती थी! आदर भाव की समझ तो नही थी, पर इस तरह के निबंध लिखने का अनुभव मुझे अपने स्कूली जीवन के पहले पाँच सालो तक मिला था! 

आज के स्कूली बच्चो को 'हमारे प्रधानमंत्री' जैसे विषय पर निबंध लिखने को कहा जाए तो मनमोहन सिंह के नाम के अलावा कुछ लिख पाए तो गनीमत होगी! डर है की कहीं अधिकतम बच्चे फेल ना हो जाए! ना तो बच्चे मनमोहन सिंह की विशेषताओ को जानते हैं और ना ही उनके कहे गये वाक़्यो को याद रख सकते हैं! क्या करें हमारे प्रधानमंत्री बड़े लो प्रोफाइल हैं! नेहरू देश के पहले प्रधानमंत्री थे इसलिए निबंध के माध्यम से बिकते रहे! जब मनमोहन सिंह आए तो लगा जैसे कोई है जो नेहरू को निबंधो के प्रश्नो से हटा देगा! या तो नेहरू के साथ अपना भी स्थान बना लेगा! देश में आर्थिक उदारीकरण का चेहरा रहे मनमोहन सिंह दूसरी बार प्रधानमंत्री बनने के बाद भी देश से दो ही वाक्य कहते रहे हैं! ना तो इससे ज़्यादा कुछ बोले हैं और ना ही इससे ज़्यादा जनता उन्हे जानती है! नक्सलवाद सबसे बड़ी आंतरिक चुनौती है और बढ़ती महेंगाई विकास दर में बाधा डालने का काम कर रही है! इसके अलावा मनमोहन कभी कुछ नही बोले! गणतंत्र दिवस और स्वतंत्रता दिवस पर दिए जाने वाले राष्ट्र के नाम संदेश जिस तरह सरकारी लगते हैं, उसी तरह मनमोहन सिंह भी सरकारी फ्रेम में गढ़ी तस्वीर लगते हैं! 


महानगारो के बाहर कितने लोग मनमोहन सिंह को जानते होंगे ये भी देखने वाली बात होगी! आज के स्कूली जीवन में प्रधानमंत्री की जगह स्कूली दीवारो पर लगने वाली तस्वीर से ज़्यादा नही है! हर दिन भ्रष्टाचार से लड़ते वो अकेले खड़े नज़र आते हैं! वित्त मंत्री रहे मनमोहन सिंह प्रधानमंत्री बन तो गये लेकिन बिज़्नेस हाउस से स्कूल में शिफ्ट नही हो पाए! राहुल गाँधी वाला आम आदमी मनमोहन को नही जानता होगा! उसे सोनिया गाँधी पता है! कल कोई ये पोल छाप दे की आधा देश सोनिया गाँधी को प्रधानमंत्री समझता हैं तो कोई झटका नही लगेगा!

निबंध उन चुने हुए लोगों के बारे में लिखा जाता था जो देश, समाज को प्रेरित करते रहे है! ओबामा अपनी जनता से नियमित बात करते नज़र आते है! हमारे प्रधानमंत्री ना बात करते हैं और ना उनका काम हमसे बात करता है! वो भाषण ज़रूर देते हैं! जो ना जनता को समझ आता है और ना ही प्रधानमंत्री के साथ बैठे लोगो को! मनमोहन किसी को प्रेरित नही करते! शायद खुद को भी आइने में देखना टाल देते होंगे! आर्थिक उदारीकरण के सूत्रधार रहे मनमोहन सिंग को जनता सिर्फ़ सरकारी कार्यक्रमो के माध्यम से ही जानती हैं! प्रधानमंत्री से जनता की मुलाकात समाचारपत्रो में छपने वाले शिलान्यास के इश्तहारो के ज़रिए ही होती है! मनमोहन सिंह आज भी किसी बाहरी अधिकारी की तरह देखे जाते है!

मनमोहन वो प्रधानमंत्री हैं जो निबंध को कठिन बना देते हैं! मनमोहन सिंह उस सोच का हिस्सा हैं जिसमे निबंध लिखना बड़ा कठिन काम माना जाता है! इस जनता और उनके प्रधानमंत्री के बीच बढ़ते फ़ासले की वजह से ही मनमोहन सिंह निबंध का विषय नही हैं!